Obsessive-compulsive disorder (जुनूनी बाध्यकारी विकार)

Dec 30, 2017 | Latest Updates

इस बीमारी में obsession और Compulsion के तोर में अलग अलग लक्षण पाये जाते हैं। इनके चलते व्यक्ति की निजी और रोजमर्रा की जन्दगी प्रभावित हो जाती है। यह बीमारी लगभग २० साल की उम्र के आस पास आती है। लगभग 2 से 3% जनसँख्या इस बीमारी से प्रभावित है। एक बार आने पर 85%  लोगों में ये बीमारी लगातार बनी रहती है।

Obsession की परिभाषा

इसमें कुविचार, कल्पना, चित्र, आवेग और भावनायें, जो कि ना चाहते हुए भी बारबार आते रहते हैं और वो इतने दखलकारी होते हैं कि फिर उनकी वजह से राहट शुरू हो जाती है जैसे गन्दगी का विचार बार बार आना।

Compulsion की परिभाषा

ये वो सारी क्रियाएँ जो कि Obsession को या राहट को कम करने के लिए व्यक्ति बार बार करते हैं। लोग ऐसा घबराहट को कम करने के लिए करते हैं लेकिन इससे हर बार घभराहट कम हो ऐसा जरुरी नहीं है और कई बार तो उल्टा ज्यादा बढ़ जाती है। जैसे कि हा गंदे होने का विचार बार बार आता रहता है और उसके बाद जब तक व्यक्ति हाथ धोये तो उसकी घबराहट बढ़ती रहती है और उसे हाथ धोना ही ता है, यहाँ बार बार हाथ धोना ही Compulsion है।

Obsession के लक्षण

. ये बार बार आते और दखलकारी होते हैं।

. तर्कहीन एवं अर्थहीन होते हैं।

. इच्छा के विरुद्ध

. जो बिलकुल अच्छे नहीं लगते।

Common obsession

गन्दगी का विचार आना

मनोविकारी शक

चीजों का ठीक से व्यवस्थित लगना

सेक्सुअल विचारों का बार बार आना

खुद को नुकसान पहुँचाने का मन करना और

कोई विचार, कल्पना, चित्र, आवेग और भावनायें जो इच्छा के विरुद्ध एवं बार बार आये

Common compulsion:

बार बार हाथ एवं सामान जैसे कपडे, फर्श साफ करना

बार जाँच (Check) करना

चीजों और सामान को व्यवस्थित करना

घर में काम आने वाले सामान को कटद्ठा कर लेना

इस बीमारी की शुरुआत धीरे धीरे होती है और समय के साथ बीमारी के लक्षण बढ़ जाते हैं। उदहारण के लिए जैसे कि किसी को गन्दगी का विचार का आना। किसी भी वास्तु या चीज को छूने पे ऐसा लगना की हाथ गंदे हो गए हैं या किसी के द्वारा छूने पर ऐसा लगना कि वस्तु या सामान गन्दा हो गया है। ये विचार आते ही सफाई का ख्याल (हाथ धोना,कपडे या बेडशीट धोना औरपोचा मारनाआना शुरु हो जाता है और जब तक ऐसा नहीं करतेहैं ये विचार निकलता ही नहीं है और राहट शुरु हो जाती है। धीरे धीरे इन विचारों की आवर्ती बढ़ने लग जाती है दिन का बहुत सारा समय सफाई, नहाने व धोने में ही निकल जाता है जिसके चलते बाकि काम बाकि रह जाते है। जैसे जैसे बीमारी बढ़ती जाती है उसके साथ उदासी के लक्षण आने लग जाते है जैसे चिचिडापन व गुस्से का आना, मन का उदास रहना, किसी काम में मन का नहीं लगनानींद कम आना और बहुत ज्यादा बढ़ने पर आत्महत्या के विचार आने भी शुरु हो जाते हैं।

ऐसे में क्या करें ??

जैसे ही ये लक्षण आने शुरु होते हैं, तुरंत मनोचिकिस्तक के यहाँ जाएँ क्योंकी आप जितना जल्दी जायेगें बीमारी के ठीक होने की उम्मीद उतनी ही ज्यादा होती है। फिर भी ज्‍यादातर लोग सालोँ तक मनोचिकिस्तक के यहाँ नहीं जाते हैं और जब बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है तब मनोचिकिस्तक के यहाँ पहुँचते हैं। इस बीमारी के लिए दवा व थेरेपी दोनों ही काम करती हैं जो की बीमार व्यक्ति व मनोचिकिस्तक के सामूहिक फैसले पर निर्भर करता है की कौ सा इलाज शुरु करना है।

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